रिपोर्ट | लो-कार्बन इकोनॉमी, सस्टेनेबल मोबिलिटी
प्रस्तावित उद्धरण: कंबोज, पुनीत, अंकुल माल्यान, हरसिमरन कौर, हिमानी जैसन, और वैभव चतुर्वेदी। 2022। इंडिया ट्रांसपोर्ट एनर्जी आउटलुक। नई दिल्ली: काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवारयनमेंट एंड वॉटर।
19 जुलाई, 2022
डिस्क्लेमर : यह मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद है। हमने इसके अनुवाद में पूरी सतर्कता बरती है। यदि इसमें कोई भ्रम होता है या भूलवश कोई त्रुटि सामने आती है तो इसका अंग्रेजी संस्करण ही मान्य होगा।
यह अध्ययन इस बात की जांच करता है कि अगले 30 वर्षों में सामान्य परिस्थितियों वाले परिदृश्य में भारत का परिवहन ऊर्जा उपयोग और संबंधित कार्बन उत्सर्जन कैसा दिखाई देगा। यह बताता है कि अगले कुछ दशकों में भारत के परिवहन क्षेत्र में बाजारिक शक्तियों से प्रेरित गहरे संरचनात्मक बदलाव होंगे। इसके अलावा, यह अध्ययन परिवहन क्षेत्र को डीकार्बनाइज करने की चुनौतियों को सामने लाता है और अधिक व्यय योग्य आय (higher disposable incomes) के कारण आने वाले असतत आवागमन व्यवहारों (unsustainable mobility behaviours) के दुष्परिणामों को टालने में नीति-निर्माण की भूमिका को रेखांकित करता है।
वैश्विक स्तर पर, ऊर्जा की मांग और संबंधित उत्सर्जन में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता परिवहन क्षेत्र है। दुनिया भर के देश इस क्षेत्र से उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियां बना रहे हैं। भले ही भारत में परिवहन क्षेत्र देश के कुल ऊर्जा उपयोग के पांचवें हिस्से से भी कम खपत और ऊर्जा से संबंधित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लगभग 11 प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है, लेकिन इसका उत्सर्जन अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेजी से बढ़ रहा है। भारत के आर्थिक विकास के साथ इस क्षेत्र से जुड़ा उत्सर्जन और तेजी से बढ़ने की उम्मीद है।
भारत की परिवहन सेवाएं इसके भविष्य के विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसका बुनियादी ढांचे के विकास और विनिर्माण से नजदीकी संबंध है। इसलिए अपने जलवायु लक्ष्यों को संतुलित करते हुए आगामी विकास की रूपरेखा (developmental trajectory) के अनुसार आगे बढ़ने के लिए, भारत को सतत और निम्न-कार्बन परिवहन क्षेत्र पर जोर देने वाली नीतियों की जरूरत है।
यह ट्रांसपोर्ट सेक्टर आउटलुक निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को सामने रखता है:
हमारे आकलन के अनुसार, नीति निर्माताओं को निम्नलिखित चुनौतियों के बारे में विशेष रूप से जागरूक होने और प्रभावी समाधान के लिए पहले से अच्छी तैयारी करने की जरूरत है:
भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और यहां लगभग 1.4 अरब लोग रहते हैं। पिछले 20 वर्षों में 7 प्रतिशत की औसत आर्थिक वृद्धि दर (चक्रवर्ती 2021) के साथ, इसकी विशाल जनसंख्या की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए माल व यात्री परिवहन की जरूरत भी तेजी से बढ़ रही है (नीति आयोग, आरएमआई और आरएमआई इंडिया 2021)। भारत में लगभग 50 प्रतिशत तेल की मांग परिवहन क्षेत्र से आती है (IEA 2021)। भारत में कुल ऊर्जा मांग के एक बड़े हिस्से के लिए परिवहन क्षेत्र जिम्मेदार है, केवल तीन अन्य देश - अमेरिका, चीन और रूस - अपनी ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा परिवहन को समर्पित करते हैं (IEA 2016)। भले ही अमेरिका, चीन और रूस में परिवहन ऊर्जा की मांग में वृद्धि अब धीमी पड़ रही है, लेकिन निम्न प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के साथ-साथ एक विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते भारत में परिवहन मांग (transport demand) बढ़ने वाली है (IEA 2021)। आर्थिक विकास के साथ-साथ परिवहन मांग भी बढ़ती रहेगी, जिससे भारत में परिवहन क्षेत्र ऊर्जा उपयोग और डीकार्बोनाइजेशन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हो जाएगा। आज जो भी प्रौद्योगिकी विकल्प चुने और नीतिगत निर्णय लिए जाएंगे, वे आने वाले दशकों में इस क्षेत्र में ऊर्जा उपयोग और कार्बन उत्सर्जन निर्धारित करेंगे। इंडिया ट्रांसपोर्ट एनर्जी आउटलुक का उद्देश्य यह समझना है कि अगले 30 वर्षों में भारत का परिवहन ऊर्जा उपयोग और उससे संबंधित कार्बन उत्सर्जन सामान्य परिदृश्य (business-as-usual scenario) में में कैसा दिखेगा।
हाल के वर्षों में, भारत में मोटरयुक्त यात्री परिवहन मांग का अधिकतर हिस्सा सड़क और रेल से, जबकि एक छोटा हिस्सा हवाई यात्रा से पूरा होता है। जलमार्गों से होने वाला यात्री परिवहन कुछ तटीय राज्यों तक सीमित है, जो सबसे कम (लगभग न के बराबर) उपयोग होने वाला साधन है (नाग 2021)। अपनी आवागमन संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारतीय प्राथमिक तौर पर दोपहिया और चार-पहिया वाहनों को निजी वाहनों की तरह इस्तेमाल करते हैं।
आय स्तर में वृद्धि के साथ, भारत में वाहनों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो दोपहिया वाहनों की संख्या में तेज वृद्धि से निर्देशित है (अनूप और यांग 2020)। भारत की कुल मोटरयुक्त यात्री गतिविधि 2005 में लगभग 1,700 बिलियन यात्री-किलोमीटर2 (पीकेएम) से बढ़कर 2020 में 3,833 बिलियन पीकेएम हो गई। मोटरयुक्त यात्रा के अलावा, भारत में आवागमन की जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा गैर-मोटरयुक्त परिवहन साधनों (पैदल और साइकिल) से पूरा होता है। भले ही यह अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी अधिक हो (आईटीएफ 2021), लेकिन सहायक बुनियादी ढांचे की कमी के कारण गैर-मोटरयुक्त परिवहन साधनों की मांग अपनी क्षमता से काफी कम है (कौर और घोष 2021)।
आंकड़े 1 भारत में आवागमन की जरूरतों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा गैर-मोटरयुक्त परिवहन साधनों (पैदल चलने और साइकिल यात्रा) से पूरा होता है।
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
नोट: विभिन्न माध्यमों के यात्री गतिविधि का अनुमान लोड फैक्टर, वार्षिक वाहन किलोमीटर और सड़क पर व्हीकल स्टॉक के लिए सरवाइवल कर्व एजम्पशन के लिए सीईईडब्ल्यू की धारणाओं पर आधारित है (सोमन और अन्य 2020)। LDV_4W, LDV_2W और LDV_3W, क्रमश: मोटरयुक्त चार-पहिया, दोपहिया और तिपहिया वाहनों को संदर्भित करते हैं।
भारतीय रेल (IR) भारतीयों द्वारा सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला यात्री परिवहन का साधन है, विशेष रूप से लंबी दूरी की यात्रा के लिए। इसका विशाल नेटवर्क 67,956 किमी तक फैला है, जो देश के कोने-कोने को जोड़ता है (रेलवे बोर्ड 2020)। रेलवे की यह व्यापक व्यवस्था दूसरी वैश्विक रेलवे प्रणालियों की तुलना में सर्वाधिक संख्या में यात्रियों को उनके गंतव्य स्थलों तक पहुंचाती है (UIC 2020)। पिछले दशक में मोटरयुक्त यात्री परिवहन मांग में रेलवे की हिस्सेदारी लगभग 30 प्रतिशत रही (चित्र 1)। एक बड़ी भारतीय आबादी के लिए रेल परिवहन आवागमन का सबसे किफायती साधन बना हुआ है, क्योंकि माल ढुलाई पर अधिक शुल्क लगाकर यात्री किराए पर क्रॉस-सब्सिडी दी जाती है (कम्बोज और टोंगिया 2018)। हालांकि, कुल मोटरयुक्त साधनों में रेलवे की भागीदारी 2005 में 36 प्रतिशत से घटकर 2020 में 31 प्रतिशत रह गई है, जिसका मुख्य कारण यात्री परिवहन में निजी साधनों की बढ़ती हिस्सेदारी है।
अधिकांश आबादी के लिए दोपहिया वाहन निजी परिवहन का पसंदीदा साधन है। भारत, दोपहिया वाहनों के लिए सबसे बड़े और सबसे तेज गति से बढ़ने वाले बाजारों में से एक है (डोभाल 2017; अनूप और यांग 2020)। भारत में कई परिवारों के लिए दोपहिया वाहन कहीं भी आवागमन का प्राथमिक निजी साधन है। भारतीय वाहनों में दोपहिया वाहनों की वृद्धि के प्रमुख कारकों में एक इनकी उच्च ईंधन कुशलता है (बंसल और अन्य 2021)। अधिकतर भारतीय शहर बहुत अधिक भीड़-भाड़ वाले हैं, इसलिए यातायात में फंसने से बचने के लिए दोपहिया वाहन यात्रा का पसंदीदा साधन बन गया है (झा 2020)। महानगरों की तुलना में टियर-1 और टियर-2 शहरों में दोपहिया वाहन अधिक लोकप्रिय हैं, जिसका प्रमुख कारण पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन की कमी है (सोमन और अन्य 2019)। भारत में तेजी से बढ़ते ई-कॉमर्स उद्योग ने सुदूर क्षेत्रों तक वस्तुओं के वितरण के लिए दोपहिया वाहनों के उपयोग को बढ़ाने में योगदान दिया है।
मध्यवर्ती सार्वजनिक परिवहन (आईपीटी), जिसमें मुख्य रूप से तिपहिया वाहन और ई-रिक्शा शामिल हैं, शहरी आवागमन के आवश्यक साधन हैं। आईपीटी पर्याप्त सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे की कमी वाले छोटे शहरों में परिवहन और बड़े शहरों में फीडर के रूप में सेवा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है (गडेपल्ली 2016)। भारत में, तिपहिया वाहन मुख्य रूप से साझा की जाने वाली परिवहन सेवा (shared mobility service) के रूप में उपयोग किए जाते हैं और यह भारतीय शहरों में अपर्याप्त सार्वजनिक परिवहन ढांचे की मदद करते हैं (IEA 2021)। एक बड़ी जनसंख्या बड़े पैमाने पर बसों का उपयोग करती है, खास तौर पर इंटरसिटी यात्राओं के लिए, और कुछ शहरों में शहर के भीतर सीमित यात्राओं के लिए। 2020 में, तिपहिया वाहनों और बसों (सार्वजनिक व निजी दोनों) का मोटरयुक्त यात्री आवागमन में क्रमशः 13 प्रतिशत और 17 प्रतिशत का योगदान था।
2020 में कुल यात्री परिवहन में चार पहिया वाहनों का योगदान लगभग 9 प्रतिशत रहा। विकसित देशों की तुलना में भारत में चार पहिया वाहनों की कम स्वामित्व दर के कारण कुल यात्री आवागमन में इनकी हिस्सेदारी कम है (आईटीएफ 2021)। हालांकि, बढ़ते आय स्तर के साथ भारतीय वाहनों में चार पहिया वाहनों का हिस्सा तेजी से बढ़ रहा है (MoRTH 2017)। ऐप-आधारित ऑन-डिमांड मोबिलिटी सेवाओं के बढ़ते बाजार ने भी भारत में चार पहिया वाहनों की संख्या को बढ़ाने में योगदान दिया है (आईटीएफ 2021)। यात्री सेवा मांग में घरेलू विमानन की हिस्सेदारी सबसे कम है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह लगातार बढ़ रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के त्वरित विकास के साथ माल ढुलाई गतिविधि में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। माल ढुलाई मांग में वृद्धि प्राथमिक रूप से सड़क परिवहन क्षेत्र में आती है। भारत में माल ढुलाई 2005 के स्तर की तुलना में 2020 में दोगुनी होकर 2,250 बिलियन टन किलोमीटर (tkm) हो गई। राष्ट्रीय परिवहन विकास समिति की इंडिया ट्रांसपोर्ट रिपोर्ट के अनुसार, माल ढुलाई की मांग में वृद्धि के साथ रेल-रोड हिस्सेदारी का उपयुक्त विकास नहीं हुआ है (राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति 2014)।
माल ढुलाई की मोडल हिस्सेदारी में ट्रकों का वर्चस्व है, 2020 में कुल माल ढुलाई गतिविधि में इनका हिस्सा लगभग 65 प्रतिशत था। पिछले दो दशकों में, भारत ने राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों के विस्तार और निर्माण में सड़क बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में काफी निवेश किया है (IEA 2021)। सड़क बुनियादी ढांचे में इस सुधार ने ट्रकों से वस्तुओं की ढुलाई की औसत दूरी को बढ़ाने में मदद की है। भारतीय ट्रकों में, जो लंबी दूरी तक माल ढुलाई करते हैं, मुख्य रूप से मध्यम आकार के ट्रक शामिल हैं, जिनका सकल वाहन भार (gross vehicle weight) 3.5 टन-12 टन के बीच होता है (ITF 2021), जिससे खपत होने वाली ऊर्जा की एक यूनिट से अपेक्षाकृत कम वजन की ढुलाई हो पाती है।
चित्र 2 भारत की माल ढुलाई में ट्रकों का प्रभुत्व है और यह लगातार बढ़ रहा है
स्रोत: लेखक का विश्लेषण GCAM-CEEW पर आधारित है।
क्षमता विस्तार और बाजार की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थता के कारण, भारतीय रेल सड़क की तुलना में माल ढुलाई में अपनी हिस्सेदारी लगातार गंवा रही है (राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति 2014)। भारतीय रेल बड़ी मात्रा में माल ढुलाई करती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसकी मोडल हिस्सेदारी (Modal share) में गिरावट आई है। इसकी हिस्सेदारी घटने के विभिन्न कारणों में से दो प्रमुख कारण हैं- माल ढुलाई की उच्च लागत और रेलवे नेटवर्क पर अत्यधिक भीड़ (कम्बोज और टोंगिया 2018)। भारतीय रेल यात्री सेवाओं पर क्रॉस-सब्सिडी देने के लिए माल ढुलाई सेवाओं पर अधिक शुल्क लगाती है, जो इसे अन्य देशों के समान रेलवे प्रणालियों की तुलना में भार ढुलाई के मामले में दुनिया की सबसे महंगी रेलवे प्रणाली बना देता है (कंबोज और टोंगिया 2018)। इसके अलावा, भारतीय रेल अत्यधिक भीड़भाड़ और अधिक उपयोग किए गए साझा ट्रैकों पर यात्री और माल ढुलाई दोनों का संचालन करता है, जहां यात्री परिवहन को हमेशा प्राथमिकता दी जाती है। इस नीति के परिणामस्वरूप समय पर डिलीवरी की गारंटी के बिना रेल के डिब्बों को गंतव्य तक पहुंचने में बहुत अधिक समय लगता है। भारतीय रेलवे से ढोए जाने वाले सामानों की सूची कुछ थोक वस्तुओं तक ही सीमित है, उदाहरण के लिए, माल ढुलाई से प्राप्त कुल राजस्व में से लगभग 45 प्रतिशत हिस्सा कोयले की ढुलाई से आता है (कंबोज और टोंगिया 2018)। अपने राजस्व के लिए सीमित वस्तुओं पर अत्यधिक निर्भरता और अपनी कमोडिटी बास्केट को बढ़ाने में असमर्थता के कारण व्यापारिक अवसरों का नुकसान होता है (राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति 2014)। घरेलू नौ-परिवहन, जिसमें तटीय नौ-परिवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग शामिल है, बहुत ही अविकसित है और समग्र माल ढुलाई में इसकी हिस्सेदारी न के बराबर है।
भारत में परिवहन क्षेत्र ऊर्जा, विशेष रूप से तेल, का एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता रहा है। 2020 में, परिवहन क्षेत्र ने लगभग 4 एक्साजूल्स (ईजे) ऊर्जा का उपभोग किया, जो भारत में खपत हुई कुल ऊर्जा का 19 प्रतिशत था। भले ही परिवहन क्षेत्र भारत की अंतिम ऊर्जा खपत में अपेक्षाकृत रूप से एक छोटे हिस्से के लिए जिम्मेदार हो, लेकिन भारत की कुल तेल खपत में यह लगभग 50 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार था (IEA 2020)।
चित्र 3 2005 से 2020 तक यात्री परिवहन और माल ढुलाई के विभिन्न माध्यमों द्वारा खपत की गई ऊर्जा
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
2020 में, दोपहिया वाहनों ने कुल यात्री ऊर्जा का 31 प्रतिशत उपभोग किया, किसी अन्य मोड से अधिक था। बसों और तिपहिया वाहनों ने मिलकर कुल यात्री परिवहन ऊर्जा के 29 प्रतिशत हिस्से का उपभोग किया। कुल यात्री परिवहन गतिविधियों में कम हिस्सेदारी के बावजूद चार पहिया वाहनों की कुल यात्री परिवहन ऊर्जा में हिस्सेदारी 27 प्रतिशत रही, क्योंकि अन्य साधनों की तुलना में इसकी प्रति यात्री कम ईंधन दक्षता कम है। घरेलू विमानन भी एक ऊर्जा सघन साधन रहा, जिसकी यात्री गतिविधि में 2 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ कुल ऊर्जा खपत में योगदान 8 प्रतिशत रहा।
यात्री परिवहन और माल ढुलाई दोनों ही मामले में रेलवे सर्वाधिक ऊर्जा कुशल साधन है। भारतीय रेलवे अकेले ही यात्री और माल ढुलाई गतिविधियों में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देती है, जबकि सभी परिवहन सेवाओं द्वारा उपभोग की गई कुल ऊर्जा के सिर्फ 5 प्रतिशत हिस्से का ही उपयोग करती है। भारत में विद्युतीकृत रेल नेटवर्क की अपेक्षाकृत अधिक हिस्सेदारी अन्य देशों की रेल प्रणालियों की तुलना में इसे अधिक ऊर्जा-कुशल बनाती है। हाल ही में, भारतीय रेल ने घोषणा की है कि वह 2023 तक अपने रेल नेटवर्क का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण कर देगी, जो इसे विश्व में सर्वाधिक ऊर्जा-कुशल रेल नेटवर्क बना देगा (रेल मंत्रालय 2020)।
माल ढुलाई की ऊर्जा खपत में ट्रकों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। 2005 और 2020 के बीच, ट्रकों द्वारा खपत की गई ऊर्जा, माल ढुलाई गतिविधि में इनकी हिस्सेदारी की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी। वृद्धि दरों में इस अंतर के पीछे भारतीय ट्रकों की कम ईंधन दक्षता मुख्य कारण दिखाई देती है। ईंधन दक्षता के सख्त मानकों को लागू करने, विशेष रूप से भारी वाहनों के लिए, में भारत की धीमी प्रगति ने भी इस अंतर को बढ़ाया है (गर्ग और शार्पे 2017)। भारतीय ट्रक बेड़े की विशेषता निजी स्वामित्व और मध्यम आकार वाले डीजल ट्रक हैं, जिनकी अन्य विकसित देशों की तुलना में ईंधन दक्षता कम है। भारतीय वाहन बेड़े, विशेष तौर पर ट्रकों, में पुराने वाहनों की अधिकतम हिस्सेदारी इसकी एक और पहचान है। भारत में पुराने वाहनों का एक द्वितीयक बाजार (secondary market) तेजी से विकसित हो रहा है। अक्सर, ट्रक जो पहले से कई वर्षों तक उपयोग हो चुके हैं और जिनका मूल्य घट चुका है, उन्हें प्रयुक्त वाहन के बाजार (used vehicles’ market) में काफी कम कीमत पर बेच दिया जाता है। बेहद कम ईंधन और उत्सर्जन दक्षता के बावजूद ये वाहन एक बार फिर कई वर्षों तक, मुख्य रूप से शहर में छोटी दूरियों के लिए तब तक चलते रहते हैं, जब तक वे पूरी तरह से काम करना बंद नहीं कर देते हैं।
परिवहन क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन यात्री और माल ढुलाई दोनों के लिए इस्तेमाल होने वाले विभिन्न साधनों में ऊर्जा खपत को दर्शाता है। 2020 में, परिवहन क्षेत्र का प्रत्यक्ष उत्सर्जन (टेलपाइप उत्सर्जन) (अंतरराष्ट्रीय विमानन और अंतरराष्ट्रीय नौ-परिवहन को छोड़कर) 272 मिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड (MtCO2) था। सड़क क्षेत्र का, जिसमें यात्री और माल ढुलाई शामिल हैं, परिवहन उत्सर्जन में प्रभुत्व है और इसकी हिस्सेदारी 92 प्रतिशत से अधिक है। यह भारत की वायु प्रदूषण समस्या में भी काफी योगदान देता है। किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में सड़क परिवहन से होने वाला उत्सर्जन ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है और भारत के ऊर्जा क्षेत्र को डीकार्बोनाइज करने में यह एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
चित्र 4 2020 में परिवहन क्षेत्र से हुआ कार्बन उत्सर्जन
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
हमारा आकलन बताता है कि अगले कुछ दशकों में भारत का परिवहन क्षेत्र कैसा दिखाई दे सकता है। इस खंड में, हम भारत के परिवहन क्षेत्र के भविष्य के विकास के प्रमुख बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे। हमारा विश्लेषण यह मानता है कि किसी विशेष साधन या प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित नीतिगत प्रयास के अभाव में बाजारिक शक्तियां यात्री और माल परिवहन दोनों का विकास प्रभावित करती रहेंगी। हम यह भी मानते हैं कि सभी माध्यमों में तेल और गैस आधारित आंतरिक दहन इंजन (ICE) की लागत ऐतिहासिक रुझानों के अनुरूप रहेंगी। सामान्य (बीएयू) परिदृश्य की एक महत्वपूर्ण धारणा यह भी है कि सभी परिवहन साधनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की लागत में गिरावट जारी रहेगी। हमारे आकलन के अनुसार, 2030 तक, इलेक्ट्रिक चार-पहिया वाहन पूंजीगत लागत के में आईसीई वाहनों के बराबर पहुंच जाएंगे। अन्य साधनों के लिए कीमत में गिरावट की दर अलग होगी, क्योंकि प्रत्येक साधन के लिए बैटरी की लागत का हिस्सा अलग-अलग होता है।
परिवहन क्षेत्र के लिए विस्तृत मान्यताओं की चर्चा दस्तावेज के अनुलग्नक 1 में की गई है। हमारे मूल्यांकन से मुख्य अंतर्दृष्टि निम्नलिखित हैं।
बढ़ती अर्थव्यवस्था और तेज शहरीकरण ने अपेक्षाकृत युवा और महत्वाकांक्षी आबादी की आवागमन आवश्यकताओं को बढ़ा दिया है (कपूर और सिन्हा 2020)। यात्री परिवहन के लिए हमारा आकलन रेखांकित करता है कि अगले तीन दशकों में मोटरयुक्त परिवहन की मांग 2020 में लगभग 4,000 बिलियन पीकेएम से दोगुनी होकर 8,000 बिलियन पीकेएम से अधिक हो जाएगी (चित्र 5)। हालांकि, मोटरयुक्त यात्री परिवहन के विभिन्न साधनों की हिस्सेदारी (मोडल शेयर) में पर्याप्त बदलाव होगा।
चित्र 5 भविष्य में चार पहिया वाहन यात्री परिवहन की मांग को बढ़ाएंगे
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
ऐतिहासिक तौर पर देखें तो रेलवे और दोपहिया वाहनों का भारत के यात्री परिवहन मांग में वर्चस्व रहा है (चित्र 1), लेकिन भविष्य में इस स्थिति का बने रहना संभव नहीं है। हमारा आलकन है कि आय स्तर में वृद्धि के साथ, अगले तीन दशकों में चार पहिया वाहन यात्री सेवा की मांग का संचालन करेंगे। मोटरयुक्त यात्री सेवा में चार पहिया वाहनों की औसत हिस्सेदारी आश्चर्यजनक रूप से 2020 में 9 प्रतिशत से बढ़कर 2050 में 45 प्रतिशत हो जाएगी, जिसका मुख्य कारण आय स्तर में वृद्धि के अलावा निजी चार पहिया वाहन रखने की आकांक्षा और ऑन-डिमांड मोबिलिटी सेवाओं (जैसे ओला और उबर) में बढ़ोतरी होगी। 2020 में 2 प्रतिशत से बढ़कर 2050 में 11 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ चार पहिया वाहनों के मोडल शेयर में यह बढ़ोतरी दोपहिया वाहनों और सार्वजनिक परिवहन जैसे अन्य साधनों की घटती हिस्सेदारी की कीमत पर आती है। रेलवे, बस और तिपहिया वाहन जैसे सार्वजनिक परिवहन साधनों की प्रतिशत हिस्सेदारी में पर्याप्त कमी आएगी। ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन के दृष्टिकोण से, चार पहिया वाहनों की बढ़ती संख्या और सार्वजनिक परिवहन की घटती हिस्सेदारी भारत के परिवहन क्षेत्र के भविष्य के विकास को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगी, और यह भीड़-भाड़ से निपटने व बुनियादी सुविधाओं की जरूरत भी बढ़ाएगी।
दोपहिया वाहन आवागमन के आवश्यक साधन बने रहेंगे। भले ही शुरुआत में इनका मोडल हिस्सेदारी सर्वाधिक होगी, लेकिन अंत में इसमें गिरावट आएगी। हमारा अनुमान है कि दोपहिया वाहन सेवा की मांग 2040 के आसपास अपने शीर्ष बिंदु पर होगी और उसके बाद घटना शुरू करेगी। चीन जैसे अन्य देशों ने जिस प्रति व्यक्ति समान सकल घरेलू उत्पाद पर दोपहिया वाहनों का अधिकतम स्तर5 (peaking) और उसमें गिरावट दर्ज की थी, भारत वह स्तर 2035 तक हासिल कर लेगा (आईटीएफ 2015)। चित्र 6 भारत में दोपहिया और चार पहिया वाहनों की अनुमानित स्वामित्व दर को दर्शाता है। इन अनुमानों के अनुसार, दो-पहिया वाहनों की स्वामित्व दर 2015 में प्रति व्यक्ति आय स्तर 5000 अमेरिकी डॉलर के आसपास चरम (peak) पर पहुंच जाएगी, जबकि चार-पहिया वाहनों की स्वामित्व दर में लगातार बढ़ोतरी का रुझान देखा जाएगा।
चित्र 6 दो-पहिया वाहनों की स्वामित्व दर 2015 में प्रति व्यक्ति जीडीपी 5000 अमेरिकी डॉलर के आसपास चरम (peak) पर पहुंच जाएगी, जबकि चार-पहिया वाहनों की स्वामित्व दर में पर्याप्त वृद्धि होगी।
स्रोत: लेखक का आकलन
नोट: भविष्य में सेवा मांग के मोडल आउटपुट का उपयोग करके भविष्य के लिए स्वामित्व दरों का आकलन किया जाता है, जिसमें दोनों प्रौद्योगिकियों के लिए उत्तरजीविता वक्र (survival curves) शामिल होते हैं। हमने अनुमान किया है कि दोपहिया और चार पहिया वाहनों के लिए लोड फैक्टर और वार्षिक वाहन किलोमीटर (VKM) भविष्य में स्थिर बने रहेंगे, लेकिन जरूरी नहीं है कि ऐसा ही हो। हमने दोपहिया वाहनों के लिए 1.5 के लोड फैक्टर और 6,300 किलोमीटर के वार्षिक वीकेएम, चार पहिया वाहनों के लिए 2.14 के लोड फैक्टर और 11,560 किलोमीटर के वार्षिक वीकेएम पर विचार किया है (सोमन और अन्य। 2020)।
हमारा आकलन गिरती लागत का पूरा लाभ उठाने के लिए देश भर में इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरी चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर और सहायक पारिस्थितिकी तंत्र को तेजी से विकसित करने के महत्व पर जोर देता है। हमारे अनुमान के अनुसार, सही दिशा में प्रयासों के साथ, पहले दशक से 2030 तक शुरुआत करके और अगले 20 वर्षों तक रफ्तार बढ़ाकर, हम सभी श्रेणियों में इलेक्ट्रिक वाहनों की एक उच्च हिस्सेदारी प्राप्त कर सकते हैं। हमारा आकलन यह रेखांकित करता है कि 2030 में बिकने वाले लगभग एक-तिहाई चार पहिया वाहन और आधे दोपहिया वाहन इलेक्ट्रिक हो सकते हैं और यह हिस्सेदारी 2050 तक क्रमशः 75 प्रतिशत और 90 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। हम उच्च अग्रिम पूंजीगत लागत (high upfront capital costs) और चार्जिंग के बुनियादी ढांचे की जरूरत के कारण पहले दशक में इलेक्ट्रिक बसों के चलन में अपेक्षाकृत धीमी गति को देख रहे हैं। इलेक्ट्रिक बसों का उपयोग बढ़ाने के लिए एक केंद्रित नीतिगत प्रयास की आवश्यकता होगी, जो उच्च अग्रिम लागत की चुनौती का भी समाधान कर सके, ताकि सार्वजनिक परिवहन में बसों की हिस्सेदारी बढ़ाई जा सके। मांगों को एक साथ जोड़ने (demand aggregation) जैसे उपाय या राज्यों व नगर पालिकाओं के हिस्से में आने वाली अग्रिम लागत को घटाने जैसे अन्य हस्तक्षेप, इस हिस्से के इलेक्ट्रिफिकेशन के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
चित्र 7 नए वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी, खासकर दोपहिया और तिपहिया खंडों में, काफी बढ़ जाएगी
स्रोत: लेखक का आकलन
नोट: विभिन्न साधनों में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग हमारी इस धारणा पर निर्भर है कि भविष्य में उनकी कीमतों में गिरावट जारी रहेगी, जो अलग-अलग साधनों के अलग-अलग होगी, क्योंकि अलग-अलग साधनों के लिए बैटरी की लागत भिन्न होती है। हम यह भी मानकर चलते हैं कि सभी गैर-आर्थिक बाधाएं, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहनों, चार्जिंग स्टेशनों और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे की उपलब्धता की कमी 2050 तक खत्म हो जाएगी।
आर्थिक विकास माल ढुलाई और संबंधित लॉजिस्टिक सेवाओं की वृद्धि को ऊर्जा देता है। भारत के भविष्य के आर्थिक विकास में पर्याप्त मात्रा में आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास शामिल होगा, जिसे माल ढुलाई गतिविधियों को विस्तार देने की जरूरत होगी। माल ढुलाई के लिए हमारा आकलन दर्शाता है कि माल ढुलाई सेवा की मांग 2020 में लगभग 2,000 बिलियन टीकेएम से पांच गुना बढ़कर 2050 तक 10,000 बिलियन टीकेएम से अधिक हो जाएगी। हालांकि, यात्री परिवहन के विपरीत, हम भविष्य में माल परिवहन के मोडल शेयर में किसी महत्वपूर्ण बदलाव का आकलन नहीं करते हैं। यद्यपि हम यह देखते हैं कि रेलवे द्वारा ढुलाई किया वाला कुल माल निरपेक्ष रूप से बढ़ता रहेगा, लेकिन हमें मोडल शेयर में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं दिखाई देता है। माल ढुलाई के कारोबार में ट्रकों का वर्चस्व बना रहेगा। हम सामान्य परिस्थिति (बीएयू) परिदृश्य में घरेलू नौ-परिवहन में मामूली बढ़त देखते हैं।
चित्र 8 अगले तीन दशकों में माल ढुलाई की मांग पांच गुना से अधिक बढ़ जाएगी
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
ऐतिहासिक रूप से, भारतीय परिवहन क्षेत्र के ऊर्जा उपयोग में तेल का प्रभुत्व है; हमारा आकलन बताता है कि भविष्य में ऐसी स्थिति नहीं रहेगी। ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ, ऊर्जा विकल्पों (energy mix) में भी विविधता आएगी। परिवहन ऊर्जा की मांग 2020 में लगभग 4 ईजे से तीन गुना अधिक बढ़कर 2050 में 13 ईजे से अधिक होने का अनुमान है। कुल परिवहन ऊर्जा खपत में तेल की हिस्सेदारी 2020 में 95 प्रतिशत से घटकर 2050 में 66 प्रतिशत हो जाएगी। ईंधन विकल्पों में यह परिवर्तन प्राकृतिक गैस (3 प्रतिशत से 25 प्रतिशत) और बिजली (2 प्रतिशत से 9 प्रतिशत) की हिस्सेदारी बढ़ने से आएगा। यात्री हिस्से में घरेलू विमानन और माल ढुलाई खंड में ट्रकों द्वारा तेल के अधिकांश हिस्से का उपयोग किया जाएगा।
घरेलू विमानन, 2020 में उत्सर्जन का एक सीमांत स्रोत, भारतीय परिवहन क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन के लिए एक अत्यधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाएगा। 2050 तक, ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन में घरेलू विमानन का हिस्सा उल्लेखनीय रूप से बढ़कर ऊर्जा उपयोग का लगभग आधा और यात्री परिवहन उत्सर्जन का एक उच्च प्रतिशत हो जाएगा। इसका कारण सिर्फ हवाई यात्रा की उच्च उत्सर्जन तीव्रता नहीं है, बल्कि विद्युतीकृत सड़क परिवहन क्षेत्र (electrified road transport sector) के शून्य प्रत्यक्ष उत्सर्जन और कम ऊर्जा तीव्रता के कारण भी है, जिसके आने वाले दशकों में तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। भारत में हवाई यात्रा क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रहा है और आय स्तर में वृद्धि के साथ इसमें और उछाल आने की संभावना है। हमारा आकलन यह रेखांकित करता है कि अन्य परिवहन साधनों की तुलना में हवाई यात्रा की अपेक्षाकृत खराब ईंधन दक्षता के कारण घरेलू हवाई यात्रा इस क्षेत्र के ऊर्जा उपयोग और डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगी।
चित्र 9 यात्री परिवहन के त्वरित इलेक्ट्रिफिकेशन का अर्थ है कि 2050 तक ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन में विमानों की हिस्सेदारी काफी बढ़ जाएगी`
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
यात्री वाहन बेड़े के विद्युतीकरण में परिवहन क्षेत्र की ऊर्जा खपत और उत्सर्जन को सीमित करने और घटाने की महत्वपूर्ण संभावना मौजूद है। सहायक बुनियादी ढांचे में निवेश पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपयोग और उत्सर्जन को घटाने में सहायता कर सकता है। इस अध्ययन के अनुसार, त्वरित विद्युतीकरण और दोपहिया सेवा की मांग के शीर्ष बिंदु (peak) पर पहुंचने के कारण, यात्री परिवहन में दोपहिया वाहनों के कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन का हिस्सा 2020 में 32 प्रतिशत से घटकर 2050 में सिर्फ 3 प्रतिशत रह जाएगा। चार-पहिया सेगमेंट में इलेक्ट्रिक वाहनों का तेजी से अपनाया जाना उनकी तीव्र वृद्धि और ऊर्जा-कुशल तरीकों से दूर होने जैसे नकारात्मक प्रभावों को समाप्त कर देगा। हालांकि, सड़कों पर चार पहिया वाहनों की बढ़ती संख्या से भीड़भाड़ और बुनियादी ढांचे की आवश्यकताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
माल ढुलाई क्षेत्र में ऊर्जा खपत और कार्बन डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन पर ट्रकों का वर्चस्व बना रहेगा (चित्र 10)। ट्रकों से होने वाले उत्सर्जन उनकी संबंधित ऊर्जा खपत की तुलना में धीमी गति से बढ़ेंगे क्योंकि पिछले दशक में प्राकृतिक गैस का हिस्सा बढ़ रहा है और इलेक्ट्रिक ट्रकों के उपयोग में मामूली वृद्धि हुई है (चित्र 11)।
चित्र 10 पपरिवहन ऊर्जा खपत में ट्रकों का भारी वर्चस्व रहेगा
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण
गैस की कम कीमत के बावजूद, बुनियादी ढांचे की बाधाओं के कारण हम ट्रकों के ईंधन विकल्पों में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी में तत्काल किसी वृद्धि की उम्मीद नहीं करते हैं। प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी में कोई सार्थक वृद्धि देखने के लिए आवश्यक पाइपलाइन और बुनियादी ढांचे के निर्माण में एक दशक का समय लगेगा। हालांकि, आखिरी के दो दशकों में, ट्रकों के ईंधन विकल्पों (trucking fuel mix) में प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण प्रतिशत हासिल कर लेगा। 2050 तक, ट्रकों के ईंधन विकल्पों में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। हमारा आकलन है कि 2030 से इलेक्ट्रिक ट्रकों की धीमी गति से शुरुआत होगी। आवश्यक दूरी और अग्रिम लागत के संदर्भ में समान क्षमता वाले इलेक्ट्रिक ट्रकों की अनुपलब्धता प्रमुख बाधा बनी रहेगी।
चित्र 11 तरल ईंधन और प्राकृतिक गैस ट्रकों के लिए दो प्राथमिक ईंधन बन जाएंगे
स्रोत: GCAM-CEEW पर आधारित लेखक का विश्लेषण।
प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ भारत की यात्री परिवहन और माल ढुलाई की मांग तेजी से बढ़ रही है। आर्थिक विकास के साथ, यह क्षेत्र कई महत्वपूर्ण बदलावों का साक्षी बन रहा है, जिनका इसके विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि यह परिवर्तन, सामाजिक कल्याण को बढ़ाते हुए, समाज और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव न डाले। इसलिए, आसन्न संरचनात्मक परिवर्तनों (impending structural changes) के सततशीलता से जुड़े प्रभावों को व्यवस्थित ढंग से समझना होगा। हमारा परिवहन आकलन (transport outlook) भारत के परिवहन क्षेत्र के विकास और इसके बाद इसके ऊर्जा उपयोग व उत्सर्जन पर बाजारिक शक्तियों के प्रभावों को समझने का प्रयास करता है। नीति-निर्माताओं के साथ-साथ औद्योगिक हितधारकों को सूचित करने के लिए, हमने इस क्षेत्र में अगले तीन दशकों में होने वाले संरचनात्मक बदलावों को रेखांकित किया है। नीति को इस परिवर्तन को सहायता देने और तेजी लाने के लिए विशिष्ट क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना होगा, जबकि व्यय योग्य उच्च आय (higher disposable incomes) से आने वाले असतत आवागमन व्यवहारों (unsustainable mobility behaviours) के नुकसान से बचना होगा।। हमने सामान्य (बीएयू) परिदृश्य में स्थितियों का विश्लेषण किया है और नेट-जीरो परिदृश्य के प्रभाव की व्याख्या नहीं की है। हालांकि, हमारे परिणाम यह बताते हैं कि विशेष रूप से माल और विमानन क्षेत्रों में लक्षित प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि परिवहन क्षेत्र नेट-जीरो भविष्य को साकार करने के रास्ते पर है और भारतीय अर्थव्यवस्था की नौकरियों, विकास और स्थिरता के उद्देश्यों में सहभागी है।
डिस्क्लेमर : यह मूल रूप से अंग्रेजी में प्रकाशित रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद है। हमने इसके अनुवाद में पूरी सतर्कता बरती है। यदि इसमें कोई भ्रम होता है या भूलवश कोई त्रुटि सामने आती है तो इसका अंग्रेजी संस्करण ही मान्य होगा।