“दुनिया के इस बदलते रूप में तुम्हारे साथ ठहरने आई हूं”
बचपन के प्यार वाले वादे अब कौन निभाता है
मौसम जो एक बार जाए, तो फिर कहाँ लौट कर आता है
मगर देखो इस दफ़ा मेरे शहर के सावन को रोशन करने आई है
वो लड़की 13 साल बाद, एक शाम अपना वादा निभाने आई है
क्या अब भी उसे वो बात याद है?
हमारी आख़िरी मुलाकात याद है?
वो उलझी सी लड़की जो मेरी ज़िंदगी की बहार थी
बचपन का प्यार थी
मेरे शहर में खिलने वाले गुलमोहर की तरह
वो मेरी आँखों का शृंगार थी
हर दिन जिस चौराहे पर मिलते थे
फिर से चौंका गई वहीं पर
ई-बाइक पर न जाने कहीं से आ गयी वहीँ पर
देखकर मुझे उससे भी शायद रहा नहीं गया
इसलिए धीरे से उसने मुझे गले लगा लिया
फिर पूछा, “सुनो, स्कूल के पीछे वाले मैदान तक साथ चलें क्या?
उस आधे टूटे छज्जे के नीचे बैठकर, फिर से सपने बुने क्या?”
वो आधा टूटा छज्जा
दो पतली सी दीवारों पर अभी भी खड़ा होगा
शायद हमारा बचपन उसकी छत पर अब भी पड़ा होगा
उसी छज्जे के नीचे तो मैंने उससे प्यार का इज़हार किया था
और उसने “बाद में बताऊंगी ” कह कर उस वक़्त मुझे इनकार किया था
मालूम था वापिस उस रास्ते पर चलने से सारी यादें ताज़ा हो जाएंगी
उसकी आँखों की दीवानगी मुझे फिर से डुबा ले जाएगी
लेकिन क्या पता था हमें कि पहले मोड़ पर ही पहुँचते ही सब बदल जाएगा
ये रास्ते जो एक वक़्त तक आम के पेड़ से भरे पड़े थे
भरे मौसम में भी फल उन पर सूखे पड़े थे
उन्हें देखते ही हम दोनों का दिल मुरझा गया
लगा किसी ने हमारे बचपन से स्वाद निकाल दिया
अब तो वो ठंडी पड़ी सड़क भी गरम हो चली थी
न जाने दुनिया को बदलने की क्यों इतनी हड़बड़ी थी?
मैंने सोचा शायद तालाब वाले मोड़ पर कुछ पुराना हो जाएगा
क्या पता पानी में चांद को देखते ही उसका हाथ मेरे हाथों में आ जाएगा
लेकिन वहाँ भी हमें धोखा ही मिला
वो तालाब भी हमें सूखा ही मिला
बारिश के मौसम ने कितनी देर कर दी आने में
मैंने तो सोचा था मेरा इश्क़
इस भरे तालाब सा होगा इस ज़माने में
मगर मैं फिर भी कोशिश कर रहा था
वो चलते हुए आसमान में चांद ढूंढ रही थी
और मैं उसे चांद कह रहा था।
मैदान तक पहुँचते ही ये दिल और टूट गया था
नज़रें उठाकर देखा तो सामने वो छज्जा नहीं था
वहाँ हमारे बचपन का इश्क़ जैसे अलग रूप में था
उस छज्जे की छत की जगह एक सोलर पैनल लगा था
जहाँ से अंधेरा होते ही हमें उठकर जाना पड़ता था
अब उस छत के नीचे एक छोटा सा बल्ब जल रहा था
जो इतने सालों में न हो पाया, वो उस बदली छत ने कर दिया
मेरी महबूबा ने पहले मेरा हाथ थामा
फिर खींचके मुझे उस छत के नीचे बैठा दिया
और धीमी आवाज़ में मुझसे कहने लगी,
“तुम्हें याद है उस शाम मैंने तुमसे वक़्त मांगा था”
मैं तुम्हें उस वक़्त का हिसाब देने आई हूँ
अधूरे इश्क़ की पूरी ख्वाहिश बताने आई हूँ
दुनिया के इस बदलते रूप में तुम्हारा साथ निभाने आई हूँ
माना कि मैंने बहुत देर लगा दी आने में
लेकिन इस दफ़ा मैं खुद तुम्हारा जवाब बनकर आई हूँ।
Do childhood vows of love come true?
Do fading seasons ever return?
But see, she is back to brighten my city, this monsoon!
After 13 years, she has come back to fulfil her promise.
Does she remember our last meeting? Our last conversation?
Wrapped in her own mysteries,
she was my childhood love,
the colour of my life
Like the Gulmohar that blooms in my city,
she was the glory of my eyes
At the crossroads of our past trysts
She startled me today appearing silently on an e-bike, as if out of thin air
She couldn’t hold herself back on seeing me I felt her gentle embrace
She asked, "Shall we walk down to that field behind the school?
Shall we weave our dreams once again under that old broken canopy?”
That half-broken canopy Must be still standing tall on two slender walls
Perhaps our childhood still awaits under that roof
where I had expressed my love for her.
And she had rejected me with a "I'll tell you later."
I knew walking down this path would bring back memories
Her enchanting eyes would engulf me again
But little did we know, everything would change at the first turn itself
These paths that were once lined with lush mango trees in the monsoons
now were dry with shrivelled fruits
Our hearts sank on seeing the trees now
It felt like someone had robbed us of the flavour of our childhood
The cool streets of our past were hot and burning today
Why was the world in such a hurry to change?
Will the pond at the next turn remain unchanged
will it bring back an old memory?
Perhaps when she sees the reflection of the moon in it,
her hand would slip into mine?
But that was not to be! A dry, cracked pond awaited us,
much to our dismay.
The rains have taken too long to come
And here I was thinking that my love would be like a perennial pond
Yet I kept trying,
while she was looking for the moon in the sky.
I was calling her my moon.
But as soon as we reached our field, our hearts sank
We looked up only to find that the old canopy was no more
In its place, our childhood love stood another form
A solar panel had replaced that broken roof, the
one we would leave in the gathering dusk
It also housed a new bulb, glowing to dispel the gloom
That transformed roof renewed my hope,
the hope I had lost all these years.
My beloved, she reached for my hand
We sat together under the light of that lamp
In a soft voice she asked,
"Do you remember that evening,
I asked you for time?"
I’ve come to give you an account of that time, today.
To express what my yearning is
and stay with you in this continuously changing world
I admit that I took way too long to return
But this time, I, myself, have come as your answer.